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मायावती – अखिलेश के भरोसेमंद, इस आईएएस अधिकारी को सीएम योगी ने सौंपा “हाथरस” कांड का मसला सुलझाने का जिम्मा

लखनऊ. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की 2012 में जीत और बसपा की हार के बाद लखनऊ के कालिदास मार्ग स्थित घर में नए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहली बार प्रेस वार्ता कर रहे थे तभी वहां सीनियर ब्यूरोक्रेट नवनीत सहगल की एंट्री होती है. भीड़ में वह अपने लम्बे कद के कारण आकर्षण का केंद्र बन गए और उनके हाथ में मुख्यमंत्री को भेंट करने के लिए फूलों का गुलदस्ता था. सहगल मायावती के आदमी माने जाते थे.
साथी अधिकारियों द्वारा जिज्ञासु नजर से देखे जाने पर उन्होंने चतुराई से बताया कि वह अभी भी मुख्यमंत्री के सचिव हैं. उनकी प्रतिबद्धता कुर्सी के प्रति है न कि इस पर बैठने वाले के प्रति.
सहगल मायावती के 2007 से लेकर 2012 तक के कार्यकाल में सचिव रहे हैं. अखिलेश ने अभी तक पोर्टफोलियो नहीं बदले थे. इसलिए सहगल अब भी मुख्यमंत्री के सचिव थे जिसका छीना जाना तय था. बाद में ऐसा ही हुआ था. उसी शाम को सहगल यूपी पावर कॉर्पोरेशन में एमडी और सचिव बनाए गए. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बदलाव का वादा करके सत्ता में आए थे इसलिए मायावती के करीबी लोग एक टैबू की तरह थे. कुछ दिनों बाद सहगल को धार्मिक मामलों के सचिन बनाकर भुला दिए गए.

गुमनामी से अखिलेश सरकार की ब्यूरोक्रेसी में आनाआदर्शवाद और सद्भावना की लाइन दो साल बाद दूर हो गई और 2013 में मुजफ्फरनगर के दंगों से सरकार की पृष्ठभूमि को झटका लगा. अखिलेश फिर से ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो किसी न किसी तरह उनकी मदद करे. सहगल परियोजनाओं को गति देने, अनुभव और ब्यूरोक्रेसी की क्षमता वाले व्यक्ति के रूप में उभरे.

सूचना विभाग में मुख्य सचिव के पद पर भी रहे
इस तरह 1988 बैच का यह आईएएस अधिकारी पहली बार सूचना विभाग में मुख्य सचिव के पद पर लगाए गए. सहगल ने जल्दी ही प्रमुखता से बढ़ने लगे और अखिलेश ने भी उनके कौशल पर भरोसा किया. इसके बाद वह लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के प्रोजेक्ट को हेड कर रहे थे. समाजवादी पार्टी के लिए यह प्रोजेक्ट सबसे महत्वाकांक्षी विकास प्रोजेक्ट था. युवा विकास और पर्यटन विभाग भी जल्दी ही उनके हाथ में आया. इस तेजस्वी अधिकारी ने 2002 और 2004 में लखनऊ के डीएम् के रूप में रहते हुए राजनेताओं और मीडिया से अच्छे संबंध स्थापित किये थे और पीछे मुड़कर नहीं देखा. सहगल ने अखिलेश सरकार की परियोजनाओं के प्रचार से लेकर पसंदीदा परियोजनाओं को गति देने का काम किया.

मायावती के कार्यकाल में जिस व्यक्ति ने प्रमुख निर्माण परियोजनाओं के वितरण में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. उनमें मूल रूप से लखनऊ और नोएडा में भव्य स्मारक और पार्क शामिल थे. उन्होंने 24 महीने के रिकॉर्ड समय में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे तैयार कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई. अखिलेश सरकार की परियोजनाओं के प्रचार और दोहरे मोर्चों पर मुख्य व्यक्ति होने के कारण अकसर वह विपक्ष के निशाने पर रहते थे. एक्सप्रेस हाइवे का निर्माण पर भ्रष्टाचार के आरोप विपक्ष ने लगाए, ऐसे में कुछ कीचड़ उन पर भी उछला.

योगीराज में एक बार फिर प्रोत्साहन
2017 में भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने थे. योगी आदित्यनाथ की ब्यूरोक्रेसी में कई बड़े बदलाव हुए, वे अपने पास एक नई ब्यूरोक्रेटिक टीम चाहते थे. सहगल को साइड में कर दिया गया. इसके बाद एक्सप्रेस वे के निर्माण में खराब गुणवत्ता का पता लगाने के लिए एक कदम उठाया गया. इसमें भ्रष्टाचार उजागर नहीं होने के बाद सहगल को खादी और ग्रामीण इण्डस्ट्री दिया गया, वहां से उन्हें MSME विभाग भी मिला. इससे उन्हें बड़े टेबल पर आने में मदद मिली.

आदित्यनाथ की 11 सदस्यों की टीम में हैं सहगल
कोरोना वायरस महामारी में सहगल MSME में होने के नाते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 11 सदस्यों की टीम में शामिल हुए. इस टीम को वायरस से से लड़ने और अर्थव्यस्था को बचाने का काम सौंपा गया. MSME में अच्छे काम के लिए उन्हें मुख्यमंत्री से सराहना मिली. वरिष्ठ पत्रकार बिश्वजीत बनर्जी कहते हैं कि सहगल की दूरदर्शिता और सरकार की इच्छा पूरी करने की क्षमता कुछ ऐसी है जो उन्हें अपने प्रतिस्पर्धा वाले लोगों से आगे खड़ा करती है.

अब हाथरस केस में सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका
हाथरस में दलित लड़की के कथित तौर पर गैंगरेप और मौत के मामले में योगी सरकार बुरी आलोचना के दौर से गुजर रही है. इसलिए एक बार फिर योगी आदित्यनाथ सहगल पर दांव लगाने के लिए प्रेरित हुए हैं. सहगल को अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में नियुक्त करना, अवनीश अवस्थी की जगह सूचना अधिकारी के रूप में लगाना सीएम का विश्वास दर्शाता है. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल का समय बचा है, ऐसे में देखना होगा कि सहगल कैसे उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.

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