संपादकीय

कर्ज में डूबी मामा की सरकार

Madhya Pradesh government Shivraj Singh Chouhan debt

कहावत पुरानी जरूर है लेकिन अभी तक जवान है.कम से कम मध्यप्रदेश के ऊपर तो एकदम सौ फीसदी फिट बैठ रही है.मध्यप्रदेश भाजपा शासित देश के एक दर्जन राज्यों की हंडिया का एक ऐसा चावल है जो सभी राज्यों की माली हालात का खुलासा करने के लिए काफी है । Madhya Pradesh government Shivraj Singh Chouhan debt

ये बात और है की खाली जेब वाली सरकार चलने वाले राज्यों में इस समय बेशर्मी के साथ जन आशीर्वाद यात्राएं निकाली जा रहीं हैं .सत्ता में कोई भी दल हो इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. सरकार चलने वाले लोग किसी भी दल के हों उधार लेकर घी पीकर अपनी सेहत बनाने के आदी होते हैं. ऋषि चार्वाक का अर्थशास्त्र इन्हें खूब भाता है।

खैर मै मिसाल दे रहा था अपने जान से ज्यादा प्यारे सूबे मध्यप्रदेश की. हमारे सूबे में सरकार के सर पर बीते सत्रह महीने में कर्ज का बोझ बढ़कर 2 .53 लाख करोड़ होने वाला है ,जबकि राज्य का कुल बजट ही कुल 2 .41 लाख करोड़ का है .ये हकीकत है की सूबे के खजाने की ये हालत एक दिन में नहीं हुई .इसमें 18 महीने की कांग्रेस सरकार की फिजूलखर्ची भी शामिल है,लेकिन कुल मिलाकर इस तंगहाली के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ही जिम्मेदार है .क्योंकि 18 महीने से पहले और 18 महीने के बाद भी सूबा भाजपा के कर-कमलों में ही था ।

जनता के बीच अपनी सूरत चमकीली बनाये रखने के लिए सूबे की सरकार कर्ज पर कर्ज लिए चली जा रही है,बिना ये सोचे कि कर्ज वापस कहाँ से करेगी. सरकार के पास मूल तो छोड़िये व्याज की रकम अदा करने के लिए भी पैसा नहीं है. सरकार ने पहले 4 .77 फीसदी की दर से कर्ज लिया था और आज कर्ज की व्याज दर 7 फीसदी तक पहुँच गयी है ।

लेकिन जनता को इसका अनुमान नहीं है .दूसरी सरकारों की तरह हमारे सूबे की मामा सरकार की दलील है की कर्ज विकास कार्य के लिए जाते हैं,लेकिन सरकार ये नहीं बताती की विकास कार्यों के लिए जाने वाला कर्ज अक्सर सरकार की फिजूलखर्ची पर जाया हो जाता है. सरकार अपनी फिजूलखर्ची कम करने का नाटक करती है तो बजट का आकार अपने आप बढ़ जाता है ।

अगर आपको इस तकनीक के बारे में ज्यादा जान्ने की रूचि हो तो आपको किसी अर्थशास्त्री के साथ बैठना होगा .आपको जानकार हैरानी होगी कि प्रदेश में तख्ता पलट के बाद से अब तक सूबे की सरकार एक-दो मर्तबा नहीं बल्कि पूरे 32 बार कर्ज ले चुकी है. कर्ज की रकम 49823 करोड़ तक जा पहुंची है.एक मजबूत सरकार का दावा करने वाले मुख्यमंत्री को बीते कुछ महीने में ही पांच मर्तबा कर्ज लेना पड़ा .हालात ये हैं कि सरकार के पास न विकास कार्यों के लिए पैसा है और न अपने कर्मचारियों को वक्त पर वेतन देने के लिए .सब कुछ ‘उधार के सिन्दूर‘ पर टिका हुआ हैकर्ज लेना लोकतांत्रिक सरकारों की मजबूरी मानी जाती है.ऊपर से कोरोना ने पहले से मजबूर सरकार को और ज्यादा मजबूर कर दिया है ।

कोरोना के कारण सूबे की सरकार की तमाम व्यवस्थाएं गड़बड़ा गयीं हैं .स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च अचानक बढ़ गया है .रही-सही कसर बाढ़ ने पूरी कर दी है .अब सरकार हवाई सर्वेक्षण तो कर सकती है नुक्सान का अंदाजा लगाने के लिए लेकिन पीड़ितों की मदद नहीं कर सकती .और अगर पीड़ितों के आंसू पोंछेगी तो उसे कर्ज तो लेना ही पडेगा .मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति दरअसल आंकड़ों की बाजीगरी में उलझी रहती है .आपको जानकार हैरानी होगी कि जो मध्यप्रदेश आज कर्ज के बोझ के नीचे सिसक रहा है वो ही मध्यप्रदेश सात साल पहले आर्थिक विकास दर के मामले में अव्वल हुआ करता था. सात साल पहले केंद्रीय आर्थिक सांख्यकी विभाग की रपट कहती है कि सात साल पहले मध्यप्रदेश ने आर्थिक विकास दर के मामले में विकसित राज्यों को पीछे छोड़ दिया था । इसका कारण राज्य में प्राइमरी सेक्टर में महत्वपूर्ण काम होना था । वर्ष 2013-14 में प्रदेश की आर्थिक विकास दर 11.08 प्रतिशत दर्ज की गई थी ।

वह भी ऐसी स्थिति में जब देश की आर्थिक विकास दर 4.86 फीसदी ही रही।कोई 7 .30 करोड़ की आबादी वाले मध्यप्रदेश को पांच साल पहले देश में छठा स्थान प्राप्त था ,पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेतपत्र जारी करने की मांग कर चुके हैं.पटेल की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गयी .पटेल कहते हैं कि सूबे की सरकार विधायकों को खरीदने में ही कंगाल हो गयी ।

पटेल का आरोप हालांकि राजनीतिक है लेकिन उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती .मोटे तौर पर माना जा रहा है कि सूबे के हर व्यक्ति पर करीब 30 हजार रुपए से अधिक का कर्ज है. आर्थिक जानकारों के मुताबिक, इन हालातों में प्रदेश सरकार को अपने खर्चों में कटौती करना चाहिए, जिससे जनता पर कर्ज का भार कम होगा.आर्थिक रूप से बीमार और गलेगले तक कर्ज में डूबी मामा सरकार को अब प्रदेश की खनिज सम्पदा नीलाम करने की जरूरत महसूस होने लगी है।

सरकार ने आगामी वर्ष 2022 तक सौ से अधिक खनिज ब्लाक्स की नीलामी की योजना बनाई है।सरकार ने आगामी वर्षों में नीलाम होने वाले खनिज ब्लाक्स से 50 साल तक लगभग 30 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है।वित्त विभाग गृह, स्कूल शिक्षा, लोक निर्माण, स्वास्थ्य, जल संसाधन, उद्योग विभाग के साथ बैठक कर आने वाले खर्चों का हिसाब लगाने में जुटा हुआ है । पूरी स्थिति अक्टूबर तक साफ हो जाएगी और किसी तरह का सुधार न हुआ तो सरकार को ओवर ड्राफ्ट लेना पड़ सकता है।

वैसे तय माना जा रहा है कि सरकार के पास अब कोई और विकल्प बचा नहीं है।राम की चिड़ियां राम के खेत, खाओ रे चिड़ियां भर-भर पेट’ बोलने वाले शिवराज सिंह चौहान की बोलती इस समय बंद है .उन्हें सूझ नहीं रहा है कि वे सूबे को इस बेहद खराब हालात से कैसे बाहर निकालें ?कुल मिलाकर आने वाले दिन मध्यप्रदेश के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं .राज्य सरकार की इस दशा से आप अनुमान लगा सकते हैं कि देश की दूसरी भाजपा शाइस्त सरकारों की माली हालत कैसी होगी .कांग्रेस की सरकारों की तो माली हालत खराब होना ही है क्योंकि वे सिंगल इंजिन वाली सरकारें हैं. भाजपा की सरकारों को डबल इंजिन की सरकार कहा जाता है . Madhya Pradesh government Shivraj

लेख / राकेश अचल

Instagram – rudra ki Kalam

loading...

Related Articles

Back to top button