राष्ट्रीय

किसान को राहत

केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के विरोध के बीच बुधवार को केंद्र सरकार ने छह रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा की है। आगामी विपणन सीजन, जो कि मार्च, 2020 से आरंभ होगा, में सरकार ने दलहन व तिलहन की एमएसपी में ज्यादा वृद्धि की है। सबसे कम वृद्धि गेहूं की एमएसपी में की गई है। सरसों की एमएसपी में जहां 400 रुपये की वृद्धि की है, वहीं गेहूं की एमएसपी में 40 रुपये बढ़ाने की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में इस संबंध में निर्णय लिया गया। दरअसल, केंद्र सरकार खरीफ व रबी मौसम की तेईस फसलों के लिये एमएसपी तय करती है ताकि बाजार में मूल्यों में गिरावट होने पर किसान को नुकसान न हो। यद्यपि रबी की फसल में गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन होता है लेकिन उस पर एमएसपी ज्यादा नहीं बढ़ाई गई। सरकार की मंशा है कि किसानों को गेहूं व धान की खेती को कम करने के लिये प्रेरित किया जाये ताकि तिलहनों और दलहनों की खेती को बढ़ावा दिया जा सके। देश में खाद्य तेलों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि और इनके आयात के दबाव को कम करने के मकसद से सरकार ऐसे कदम उठा रही है। सरकार की मंशा है कि देश में मांग के अनुरूप ही तिलहन व दलहन की पैदावार में वृद्धि की जा सके। राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में जारी आंदोलन के चलते किसानों के असंतोष को कम करने की दिशा में यह एमएसपी में वृद्धि की गई है। वहीं केंद्र सरकार की दलील है कि इससे किसानों की आमदानी बढ़ेगी और उनका जीवन स्तर बेहतर होगा। दूसरी तरफ किसान नेताओं की दलील है कि एमएसपी में वृद्धि से किसानों को वास्तविक लाभ नहीं होगा क्योंकि किसानों के पास एमएसपी पर फसल बेचने की गारंटी नहीं होती।

दरअसल, पिछले नौ माह से जारी किसान आंदोलन में किसान जहां तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी देने की मांग प्राथमिकता के आधार पर उठा रहे हैं। विपक्षी दल कह रहे हैं कि एमएसपी वृद्धि के जरिये केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड आदि राज्यों के आसन्न चुनाव के मद्देनजर किसानों को साधने की कोशिश में है। वहीं कुछ कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि बढ़ती महंगाई के बीच किसान को राहत देने के लिये ये कदम उठाये जाते हैं, एमएसपी बढ़ाये जाने का किसान आंदोलन व चुनावों से कोई सरोकार नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना सामान्य प्रक्रिया है, जो सरकार हर साल बुआई से पहले अमल में लाती है। इसमें दो राय नहीं कि पेट्रोल-डीजल के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि के बाद महंगाई की जो मार सारा देश महसूस कर रहा है, उसकी तपिश किसान तक भी पहुंच रही है। कृषि उत्पादों की लागत पहले के मुकाबले बढ़ी है। डीजल, मशीनरी, बीज व खाद पर भी महंगाई का प्रभाव पड़ा है। मनरेगा में श्रमिकों की सक्रियता के बाद कई राज्य में खेती के लिये श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे मशीनरी पर किसानों की निर्भरता बढ़ी है। डीजल के दामों में वृद्धि ने किसानों की लागत बढ़ाई है। ऐसे में एमएसपी के जरिये किसी सीमा तक किसानों को राहत देने का प्रयास हुआ है। वहीं कुछ कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसपी में वृद्धि महंगाई दर के अनुपात में होनी चाहिए। सरकारी कर्मचारियों को भी तो महंगाई भत्ता मिलता है। यदि ऐसा नहीं होता तो किसान नुकसान में रहेंगे। वैसे भी एमएसपी इस बात की गारंटी नहीं है कि उससे फसल का वास्तविक मूल्य मिल सकेगा। यही वजह है कि किसानों को फसलों की विविधता बढ़ाने के लिये बेहतर विकल्प दिये जाने की बात कही जाती है। वे फसल चक्र में तभी परिवर्तन करेंगे यदि उन्हें नयी फसल से ज्यादा लाभ होगा। किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार एमएसपी की घोषणा के साथ एमएसपी पर खरीद भी सुनिश्चित करे

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