अमित शाह अगले लोक सभा चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री बन सकते है,यदि
जयपुरः जब से अमित शाह गृहमंत्री बने हैं और बीजेपी अध्यक्ष बदला है, तब से पीएम मोदी की सियासी जिंदगी में बड़े बदलाव आ रहे हैं. सितारों की चाल पर भरोसा करें तो, जहां गुजरते समय के साथ पीएम मोदी राजनीतिक तौर पर कमजोर होंगे, वहीं अमित शाह सेहत के मोर्चे पर सतर्क रहे, तो वर्ष 2022 से सियासत का एक नया अध्याय लिखेंगे.
वर्ष 2021 के बाद अमित शाह की सफलता की संभावना सत्तर प्रतिशत तक है, लिहाजा यदि किसी और राजनेता के सितारे उनसे ज्यादा बुलंद नहीं हुए तो वे अगले लोकसभा चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं.
वर्ष 2021 उनके लिए कामयाबी का संदेश लेकर आ रहा है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से जहां 2021 के उतरार्ध से अमित शाह का सियासी सितारा चमकने लगेगा, वहीं पीएम मोदी राजनीतिक तौर पर कमजोर होंगे. पीएम मोदी को मजबूत सियासी आधार, अमित शाह की लगातार सक्रियता और समर्थन से ही मिला है, क्योंकि बतौर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की प्राथमिकता हमेशा पीएम मोदी ही रहे हैं, परन्तु जब से जेपी नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, सियासी तस्वीर बदल गई है, अब जेपी नड्डा की प्राथमिकता संगठन है.
पीएम मोदी को अमित शाह का बड़ा सहारा था
प्रेस से बातचीत, राजनीतिक प्रबंधन, सियासी जोड़तोड़ आदि के मामले में पीएम मोदी को अमित शाह का बड़ा सहारा था, लेकिन अब इन तमाम मोर्चों पर नए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा उनका कितना साथ दे पाएंगे, कहा नहीं जा सकता है. वर्ष 2023 को नजरअंदाज कर दें, तो अगले पांच साल अमित शाह के लिए कामयाबी का संदेश लेकर आ रहे हैं.
इस पांच वर्षों के दौरान जहां उनके सियासी कार्यक्षेत्र का विस्तार होगा, वहीं उनका प्रभाव भी बढ़ेगा. लेकिन, वर्ष 2022 के उतरार्ध से वर्ष 2023 का समय सियासी उलझने खड़ी करेगा. खासकर, गुजरात में सियासी समीकरण साधना बड़ी चुनौती रहेगी.
अमित शाह का सियासी उलझने सुलझाने का तरीका सबसे अलग रहा
अमित शाह का सियासी उलझने सुलझाने का तरीका सबसे अलग रहा है, वे समस्या के विश्लेषण में उलझने के बजाय नया समाधान, नया रास्ता तलाश लेते हैं. अमित शाह के सियासी जीवन पर नजर डालें तो वे छोटी उम्र में ही संघ से जुड़ गए थे. आठवें दशक में वे एबीवीपी से जुड़े और छात्र राजनीति के दौरान ही उनकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई.
वे 1987 में बीजेपी में शामिल हुए और वर्ष 1991 में जब एलके आडवाणी गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े तब उन्हें चुनाव प्रचार की बड़ी जिम्मेदारी मिली. वर्ष 1997 में वे अहमदाबाद की सरखेज विधानसभा सीट से उप-चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे.
इसके बाद वे लगातार चुनाव जीतते रहे और 2003 से 2010 तक उन्होंने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला.लेकिन, वर्ष 2010 में सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें गिरफ्तारी का सामना भी करना पड़ा.
वर्ष 2013 में उनको बीजेपीे उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब यूपी में बीजेपी की महज 10 लोकसभा सीटें ही थी. अमित शाह के सियासी प्रबंधन का ही कमाल था कि लोकसभा चुनाव 2014 में यूपी से बीजेपी को पहली बार 70 से ज्यादा सीटें मिली. सियासी प्रबंधन के मामले में जितने सख्त वे बाहर से नजर आते हैं, उसके मुकाबले कई ज्यादा वे अंदर से सख्त हैं, वे कोई भी आर पार का निर्णय बेखौफ लेते रहे हैं!