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8 तरह के लोग आपको कर सकते है बर्बाद, चाणक्य नीति में दूर रहने की सलाह

आचार्य चाणक्य भारत के महान राजनीतिज्ञ और आर्थशास्त्री है। कहा जाता है कि अगर इनकी नीतियों को कोई भी शख्स अपने जीवन में उतार लें। तो वह अपने हर काम में सफल हो जाता है। इसी वजह से अधिकतर लोग उनकी नीतियों पर चलने की कोशिश करते है। इतना ही नहीं, चाणक्य ने अपनी नीतियों में एक सफल जीवन के बारे में बताया है और उन लोगों के बारें में भी बताया है। जिनसे हर शख्स को दूर रहना चाहिए। चाणक्य ने अपने 17वें अध्याय के एक श्लोक में आठ तरह के लोगों के बारे में बताया है। जो दूसरों को परेशान करते है।

राजा वेश्या यमो ह्यग्निस्तकरो बालयाचको।

पर दु:खं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकंटका:।।

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इस श्लोक में चाणक्य में राजा, वेश्या, यम, अग्नि, तस्कर, बालक, याचक और ग्राम कंटक (गांववासियों को परेशान करने वाले) का जिक्र किया है। इन आठ लोगों के बारे में चाणक्य ने बताया कि ये लोग दूसरे इंसान के दुख और संताप को नहीं जानते। इनकी प्रवृति अपने मन के अनुसार कार्य करने की होती है इसलिए लोगों को इन आठ तरह के इंसानों से दया की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

अध: पश्यसि किं बाले! पतितं तव किं भुवि।

रे रे मूर्ख! न जानासि गतं तारुण्यमौकित्कम्।।

इस श्लोक में चाणक्य ने असहाय और पीड़ित व्यक्तियों का जिक्र किया है। चाणक्य कहते है कि इंसान को कभी किसी असहाय और पीड़ित व्यक्ति का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। क्योंकि यही समय उसे भी जिंदगी में देखना पड़ सकता है। इसके आगे चाणक्य ने एक घटना का जिक्र किया और कहा कि एक उद्दंड युवक ने हंसते हुए एक वृद्धा से पूछा कि हे बोले! तुम नीचे क्या ढूंढ रही हो? उसकी ये बात सुनकर वृद्धा ने कहा कि इस बुढ़ापे की वजह से मेरा यौवन रूपी मोती नीचे गिर गया हैं, मैं उसे ही ढूंढ रही हूं। इस कहानी से ये पता चलता है कि इंसान अपने जीवन में वृद्धावस्था जरूर देखता है इसलिए दूसरे का उपहास कभी नहीं करना चाहिए।

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