विजयादशमी पर्व विशेष
जनशक्ति को श्रेय देते हुए भगवान राम कहते हैं-तुमरे बल मैं रावण मारयो
आज के संदर्भ में तुलसीदासजी दरिद्रता के रावण को खत्म करना चाहते थे
त्रेतायुगीन रामकथा के वर्तमान अमर गायक लोकनायक तुलसी के ही ये शब्द हैं। दारिद दशानन दबाई दुनी दीनबंधु-दरिद्रता ही रावण है, जो सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, सारी दुनिया को दबाए हुए है। तुलसीदासजी यह भी खुलासा करने से नहीं चूकते नृप पाप परायन, धर्म नहीं, करि दण्ड विडम्ब प्रजा-नित हीं प्रजा पालन का धर्म राजा भूल गए हैं। प्रजा को डंडे के बल पर डरा धमका कर वश में किए हैं। कवि का निष्कंप भरोसा है कि ऐसे कुशासकों का अंत जो जनता को सता रहे हैं, रावणों और कंसों की तरह जल्द से जल्द होगा। अन्याय के मलबे पर ही समता और समरसता की फसल लहलहाएगी। परंतु ऐसा तभी होगा- विनु विज्ञान कि समता आवै जबकि लोक संघर्ष, राम की तरह तर्कसंगत-विज्ञान बुद्धि से परिचालित होगा।