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सत्ता संग दुरभिसंधि पर अब नकेल

अनूप भटनागर
केंद्र या राज्यों में सत्ता परिवर्तन के साथ ही नौकरशाहों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के एक वर्ग के रवैये में बदलाव आने और राजनीतिक विरोधियों को झूठे मामले में कथित रूप से फंसाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। इस स्थिति पर न्यायपालिका लगातार चिंता व्यक्त कर रही है। लगता है कि इस स्थिति में सुधार के लिए सत्तारूढ़ दल के विरोधियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करके ज्यादतियां करने वाले नौकरशाह, विशेषकर, पुलिस अधिकारियों की गतिविधियां न्यायिक निगरानी में आ सकती हैं।
कई बार नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों का एक वर्ग सत्तारूढ़ दल के विरोधियों को मनगढ़ंत व झूठे मामलों में फंसाने और उनके गंभीर अपराधों से संबंधित आरोप में मामला दर्ज करके उनका उत्पीडऩ करने से भी नहीं चूकता है। पुलिस प्रशासन के कुछ आला अधिकारी सत्तारूढ़ दल के नेताओं के साथ निकटता बनाकर उनके इशारे पर गंभीर अपराध के आरोप में फंसे आरोपियों को कानून के फंदे से बचाने या जेल में उन्हें बेहतर सुविधाएं दिलाने के प्रयास करने में भी संकोच नहीं करते हैं। निकट भविष्य में शिकायतकर्ताओं का उत्पीडऩ करने वाले ऐसे नौकरशाह और पुलिस अधिकारियों की गतिविधियां राज्य के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में गठित किसी समिति की निगरानी की जद में आ जायें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक आकाओं के गैर-कानूनी आदेशों पर जानबूझकर अमल करने वाले नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के आचरण पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने भ्रष्टाचार और राजद्रोह जैसे आरोपों में फंसे छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह के मामले की सुनवाई के दौरान यह नाराजगी व्यक्त की।
इसी मामले में शीर्ष अदालत ने पहले भी तल्ख टिप्पणियां की थीं और कहा था कि सत्ता पर काबिज नेताओं के चहेते बनने के प्रयास में पहले तो नौकरशाह और पुलिस अधिकारी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मामले दर्ज करके उन्हें परेशान करते हैं, लेकिन जब विरोधी दल सत्ता में आता है तो उन्हें निशाना बनाने वाले पुलिस अधिकारियों को भी तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। न्यायालय का मानना है कि इस स्थिति के लिए पुलिस अधिकारी स्वयं ही जिम्मेदार हैं जो कानून को ताक पर रखकर राजनीतिक आकाओं के गैर-कानूनी आदेशों को मानते हैं। यह सिलसिला बंद होना चाहिए। कुछ महीने पहले ही शीर्ष अदालत ने राजद्रोह कानून के कथित दुरुपयोग पर भी चिंता व्यक्त की थी। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि एक गुट के लोग दूसरे समूह के लोगों को फंसाने के लिए इस प्रकार के (दंडात्मक) प्रावधानों का सहारा लेते हैं।
इसकी एक वजह यह भी है कि विशेष राजनीतिक दल या कहें कि सत्तारूढ़ दल या गठबंधन के विरोध में उठने वाली आवाज दबाने और उन्हें कानूनी लड़ाई में उलझाने के लिए भी राजद्रोह से संबंधित प्रावधान का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस संबंध में पत्रकार विनोद दुआ और आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के विद्रोही सांसद और दो समाचार चैनलों का मामला ज्वलंत उदाहरण है।
एंटीलिया मामले में मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वाजे की गिरफ्तारी और राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख पर पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के आरोप भी सत्तारूढ़ दल के साथ सांठगांठ की कहानी बयां करते हैं। इस संबंध में इसरो जासूसी कांड में देश के प्रमुख वैज्ञानिकों को गिरफ्तार करके उनके मानसिक उत्पीडऩ का मामला भी बहुत पुराना नहीं है। इसरो प्रकरण से संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शीर्ष अदालत के फैसले के बाद कार्रवाई की जा रही है।
उन्नाव बलात्कार कांड, हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड, वाराणसी बलात्कार कांड में पुलिस व प्रशासन का रवैया और सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं पर राजद्रोह के मुकदमे चंद उदाहरण हैं। इसी तरह, पंजाब में पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी के खिलाफ 29 साल पुराने मामले की नये सिरे से जांच और अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की कार्रवाई का मामला भी सर्वविदित है। राजनीतिक आकाओं और उनके परिचितों से जुड़े कोयला घोटाले की जांच प्रभावित करने के मामले में आरोपी सीबीआई के निदेशक स्व. रंजीत सिन्हा का मामला भी इसी श्रेणी में आता है। रंजीत सिन्हा के खिलाफ तो शीर्ष अदालत ने जांच का आदेश भी दिया था।
नौकरशाहों और विशेषकर पुलिस अधिकारियों के लिए इस तरह की स्थिति से बचने का बेहतर उपाय निष्पक्ष होकर कानून के अनुसार ही काम करना है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अगर पूरी सत्यनिष्ठा से काम करें और राजनीतिक आकाओं के दबाव में आकर आपराधिक मामलों को रफा-दफा करने या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भांति-भांति के आरोपों में फंसाने की प्रवृत्ति छोड़ दें तो निश्चित ही विरोधी दल के सत्ता में आने पर उन्हें इस तरह की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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