संपादकीय

वक्त के पाठ्यक्रम

वैश्विक परिदृश्य में सूचना-तकनीक उद्योग में आये अप्रत्याशित उछाल के बाद बड़ी संख्या में छात्रों का रुझान निजी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों व बीटेक कॉलेजों की तरफ हुआ। निजी इंजीनियरिंग कालेजों को खोलने की शासन की उदार नीति ने इनका तेजी से विस्तार किया। कुछ दशक पहले जिन पाठ्यक्रमों को लक्षित किया गया, वे समय की जरूरत के हिसाब से अप्रासंगिक हो गये। लेकिन ये इंजीनियरिंग कालेज बदलते दौर की गतिशील चुनौतियों के अनुरूप खुद को ढालने में विफल रहे। दरअसल तेजी से बदलता औद्योगिक परिदृश्य नित नई प्रौद्योगिकी संचालित उद्योग को प्राथमिकता दे रहा है और पुरानी तकनीकों से किनारा कर रहा है। वैश्विक औद्योगिक परिदृश्य में बदलाव को देखते हुए निजीकरण की लहर में सवार होकर आये निजी इंजीनियरिंग कालेज समय के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाये। वहीं इन संस्थानों की प्राथमिकता मुनाफा कमाना तो था लेकिन वे गुणवत्ता वाले शैक्षिक ढांचे को तैयार करने तथा योग्य शिक्षकों के बूते अपनी साख बनाने में विफल रहे। फलत: इंजीनियरिंग के विभिन्न पाठ्यक्रमों के जरिये भविष्य संवारने आने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या में तेजी से कमी आई है। अधिक मुनाफे के लालच में शिक्षा के निर्धारित मानकों पर खरे न उतरने वाले इन कालेजों में छात्र मोटी फीस के बूते दाखिला तो पा गये, लेकिन अपना भविष्य संवार न पाये। इन कालेजों में शैक्षिक योग्यता के मानकों से समझौता करने के भी आरोप लगे, जिसके चलते पिछले आठ वर्षों में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कालेज बंद होने के कगार पर जा पहुंचे। इसकी वजह है कि डिग्री पाने वाले छात्रों को जो सब्ज-बाग कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर दिखाये गये थे, वे पूरे नहीं हुए। जब डिग्री पाकर भी रोजगार के मौके नहीं मिले तो आने वाले छात्रों ने अन्यत्र भविष्य तलाशने का मन बनाया। कमोबेश यही स्थिति हरियाणा के निजी इंजीनियरिंग कालेजों की भी है जहां 37 बीटेक कराने वाले कालेज बंद हो चुके हैं। वहीं हिमाचल में कई इंजीनियरिंग कालेजों में शैक्षिक घोटाले सामने आये। वर्ष 2020-21 के सत्र में राज्य के विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों द्वारा चलाये जा रहे 402 पाठ्यक्रमों में 69 फीसदी सीटें खाली रहीं।
यह स्थिति केवल हरियाणा व हिमाचल की ही नहीं है। तेलंगाना, महाराष्ट्र, केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इंजीनियरिंग कॉलेजों के भविष्य के लिये भी कोई अच्छा संकेत नहीं है। इनके इंजीनियरिंग कालेजों के विभिन्न पाठयक्रमों की पचास फीसदी सीटों के लिये छात्र-छात्राओं ने आवेदन नहीं किये। निस्संदेह, यह भारत में तकनीकी शिक्षा के भविष्य के लिये कोई शुभ संकेत नहीं है। दरअसल, ये हालात इन निजी इंजीनियरिंग कालेजों के पाठ्यक्रमों में आमूल-चूल बदलावों की मांग करते हैं। वैश्विक परिदृश्य में आज जिन पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित इंजीनियरों की मांग है, उसी के अनुरूप विषय के पाठ्यक्रमों को छात्रों को पढ़ाये जाने की जरूरत है। मसलन, विश्व बाजार में कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे पाठ्यक्रमों की बड़ी मांग है, जिसमें युवाओं के भविष्य के लिये सुनहरे अवसर देखे जा रहे हैं। दरअसल, आज विगत वर्षों में प्रतिष्ठित ट्रेडों की मांग में गिरावट आई है। ऐसे में नये दौर में बाजार की मांग वाले विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है। हम देखते हैं कि दुनिया के रोजगार बाजार में वर्चुअल क्रांति ने नये अवसरों का सृजन किया है। नये उद्योग उभर रहे हैं। मसलन खाने से जुड़े कई नये कारोबार विकसित हुए हैं। इसी तरह यात्रा, बागवानी, नृत्य, संगीत, सौंदर्य, वस्त्र आदि के व्यवसाय में बड़ा उछाल आया है। जरूरत इस बात की है कि नये कौशलों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाये। तभी हम वैश्विक बाजार में अपने प्रशिक्षित व हुनर वाले युवाओं को स्थापित करके देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकते हैं। युवाओं को भी चाहिए कि वे भेड़चाल में न फंसकर बदलते विश्व बाजार की जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रमों का चयन करें। साथ ही निजी इंजीनियरिंग कॉलेज व विश्वविद्यालय भी समय की जरूरत के विषयों के पाठ्यक्रमों को शिक्षण का हिस्सा बनायें तथा संस्थानों में गुणवत्ता का शैक्षिक वातावरण बनायें। इसके लिये योग्य शिक्षक के जरिये समृद्ध शैक्षणिक ढांचा तैयार करना पहली शर्त होगी।वैश्विक परिदृश्य में सूचना-तकनीक उद्योग में आये अप्रत्याशित उछाल के बाद बड़ी संख्या में छात्रों का रुझान निजी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों व बीटेक कॉलेजों की तरफ हुआ। निजी इंजीनियरिंग कालेजों को खोलने की शासन की उदार नीति ने इनका तेजी से विस्तार किया। कुछ दशक पहले जिन पाठ्यक्रमों को लक्षित किया गया, वे समय की जरूरत के हिसाब से अप्रासंगिक हो गये। लेकिन ये इंजीनियरिंग कालेज बदलते दौर की गतिशील चुनौतियों के अनुरूप खुद को ढालने में विफल रहे। दरअसल तेजी से बदलता औद्योगिक परिदृश्य नित नई प्रौद्योगिकी संचालित उद्योग को प्राथमिकता दे रहा है और पुरानी तकनीकों से किनारा कर रहा है। वैश्विक औद्योगिक परिदृश्य में बदलाव को देखते हुए निजीकरण की लहर में सवार होकर आये निजी इंजीनियरिंग कालेज समय के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाये। वहीं इन संस्थानों की प्राथमिकता मुनाफा कमाना तो था लेकिन वे गुणवत्ता वाले शैक्षिक ढांचे को तैयार करने तथा योग्य शिक्षकों के बूते अपनी साख बनाने में विफल रहे। फलत: इंजीनियरिंग के विभिन्न पाठ्यक्रमों के जरिये भविष्य संवारने आने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या में तेजी से कमी आई है। अधिक मुनाफे के लालच में शिक्षा के निर्धारित मानकों पर खरे न उतरने वाले इन कालेजों में छात्र मोटी फीस के बूते दाखिला तो पा गये, लेकिन अपना भविष्य संवार न पाये। इन कालेजों में शैक्षिक योग्यता के मानकों से समझौता करने के भी आरोप लगे, जिसके चलते पिछले आठ वर्षों में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कालेज बंद होने के कगार पर जा पहुंचे। इसकी वजह है कि डिग्री पाने वाले छात्रों को जो सब्ज-बाग कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर दिखाये गये थे, वे पूरे नहीं हुए। जब डिग्री पाकर भी रोजगार के मौके नहीं मिले तो आने वाले छात्रों ने अन्यत्र भविष्य तलाशने का मन बनाया। कमोबेश यही स्थिति हरियाणा के निजी इंजीनियरिंग कालेजों की भी है जहां 37 बीटेक कराने वाले कालेज बंद हो चुके हैं। वहीं हिमाचल में कई इंजीनियरिंग कालेजों में शैक्षिक घोटाले सामने आये। वर्ष 2020-21 के सत्र में राज्य के विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों द्वारा चलाये जा रहे 402 पाठ्यक्रमों में 69 फीसदी सीटें खाली रहीं।
यह स्थिति केवल हरियाणा व हिमाचल की ही नहीं है। तेलंगाना, महाराष्ट्र, केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इंजीनियरिंग कॉलेजों के भविष्य के लिये भी कोई अच्छा संकेत नहीं है। इनके इंजीनियरिंग कालेजों के विभिन्न पाठयक्रमों की पचास फीसदी सीटों के लिये छात्र-छात्राओं ने आवेदन नहीं किये। निस्संदेह, यह भारत में तकनीकी शिक्षा के भविष्य के लिये कोई शुभ संकेत नहीं है। दरअसल, ये हालात इन निजी इंजीनियरिंग कालेजों के पाठ्यक्रमों में आमूल-चूल बदलावों की मांग करते हैं। वैश्विक परिदृश्य में आज जिन पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित इंजीनियरों की मांग है, उसी के अनुरूप विषय के पाठ्यक्रमों को छात्रों को पढ़ाये जाने की जरूरत है। मसलन, विश्व बाजार में कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे पाठ्यक्रमों की बड़ी मांग है, जिसमें युवाओं के भविष्य के लिये सुनहरे अवसर देखे जा रहे हैं। दरअसल, आज विगत वर्षों में प्रतिष्ठित ट्रेडों की मांग में गिरावट आई है। ऐसे में नये दौर में बाजार की मांग वाले विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है। हम देखते हैं कि दुनिया के रोजगार बाजार में वर्चुअल क्रांति ने नये अवसरों का सृजन किया है। नये उद्योग उभर रहे हैं। मसलन खाने से जुड़े कई नये कारोबार विकसित हुए हैं। इसी तरह यात्रा, बागवानी, नृत्य, संगीत, सौंदर्य, वस्त्र आदि के व्यवसाय में बड़ा उछाल आया है। जरूरत इस बात की है कि नये कौशलों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाये। तभी हम वैश्विक बाजार में अपने प्रशिक्षित व हुनर वाले युवाओं को स्थापित करके देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकते हैं। युवाओं को भी चाहिए कि वे भेड़चाल में न फंसकर बदलते विश्व बाजार की जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रमों का चयन करें। साथ ही निजी इंजीनियरिंग कॉलेज व विश्वविद्यालय भी समय की जरूरत के विषयों के पाठ्यक्रमों को शिक्षण का हिस्सा बनायें तथा संस्थानों में गुणवत्ता का शैक्षिक वातावरण बनायें। इसके लिये योग्य शिक्षक के जरिये समृद्ध शैक्षणिक ढांचा तैयार करना पहली शर्त होगी।

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