संपादकीय

मगरमच्छों की नाक में भी डालिए नकेल

शमीम शर्मा
नशा तो अपने मुल्क में यूं हो गया है जैसे किसी ने देश के सभी जलाशयों में घोल दिया हो। युवा वर्ग बचे भी तो कैसे? जिन हाथों में नशेडिय़ों को पकडऩे की जिम्मेदारी है, वे भी दिल से यही चाहते हैं कि नशे का धन्धा चलता रहे ताकि उनकी जिंदगी की गाड़ी सरपट दौड़ती रहे। फिर भी असंख्य चूहे बिल्ली को चकमा देकर ऐसे बिलों में घुसे हुये हैं जहां बिल्ली का पंजा पहुंच ही नहीं पाता। यदि पहुंच भी जाये तो पैसे की चमक इन पंजों की सारी हेकड़ी निकाल कर रख देता है।
विगत दिनों देश के एक बंदरगाह पर 3000 किलो ड्रग के पहुंचने और उसकी बरामदगी के समाचार खूब छपे थे, पर मामला कहां तक पहुंचा इसकी खबर नहीं मिली। एक बार तो शोर मचा था पर फिर जैसे भोंपू ही फट गया। इससे जुड़े तमाम सवालों का जवाब अभी बाकी है। अजीब बात है कि बड़ी बरामदगी के दोषी गिरफ्त में नहीं आये और चार-पांच ग्राम ड्रग रखने वालों की वाट लगा रखी है। हाई प्रोफाइल ड्रामा हो रहा है और टीवी व अखबार वाले भी चटखारे ले-लेकर दिखा रहे हैं। इधर एक अभिनेता का लाचार-सा बेटा आश्वस्त है कि पैसा सारे मुद्दे को दबा देगा। पर एक बार तो बेचारे का चूरण-सा पीस दिया।
हिरण के मामले में सलमान खान जिस तरह सींगों से उलझने में बच गया वैसे ही शाहरुख खान का लाल भी साफ-पाक बच निकलेगा और सब हाथ मलते रह जायेंगे। पैसा है ही ऐसी कमाल की चीज़। मिनट में जमानत मिल सकती है। सारे नियम-कानून फ्यूज बल्ब की तरह पड़े रह जाते हैं। इधर नगदी गरम और उधर खत्म हो जायेंगे सारे भरम। वैसे भी आमतौर पर कुछ अफसरों का कोई धरम नहीं होता। उनके सारे करम मुद्रा संचालित होते हैं।
एक समुद्री जहाज पर नवयुवकों की पार्टी का सारा मजा किरकिरा हो गया। छापेमारी में कुछ युवा जाल में फंसी मछली की तरह फंस गये। कूल्हे के नीचे पर्ची दाबे बैठे बालक कमरे में आती उडऩ दस्ते को देखकर स्वयं को सांत्वना देते हुए कहते हैं—सबसे पहली बात तो ये कि घबराना नहीं है। और सचमुच किसी के चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी। न ही उनके घरवाले घबराये क्योंकि पैसों की गरमी ने उन्हें आत्मविश्वास से भर रखा है। छोटी मछलियों को तो बेशक पकड़ा जाये पर ज्यादा जरूरी है कि मगरमच्छों की नाक में नकेल डाली जाये।

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