संपादकीय

जान बची तो लाखों पाए – व्यंग्य

जान बची तो लाखों पाए पर कहानी English

स्मिता नेगी

देहरादून। जान बची तो लाखों पाए, वाली कहावत उन सभी भारतीयों पर सटीक बैठती है जो कि यहां से अफगानिस्तान दो जून की रोटी कमाने गये थे, लेकिन उनको क्या पता था कि यहां अचानक जान के ही लाले पड़ जाऐंगे। रविवार की देर रात दून पहुचंने पर उनको लगा कि अब कभी भूलकर भी वापस वहां नहीं जाएंगे।

अफगानिस्तान में जो देखा, वो खौफनाक था। एक बार तो लगा कि अपने परिवार से कभी नहीं मिल पायेंगे, लेकिन जैसे-तैसे घर पहुंच गए। अब जान में जान आई है। उम्मीद है काबुल में फंसे सभी भारतीय सुरक्षित अपने वतन लौट आएंगे।

ये बातें अफगानिस्तान से लौटे दून वासियों ने एजेंसी कहीं।अफगानिस्तान से बामुश्किल अपने वतन लौटे दूनवासियों ने आपबीती सुनाई। रविवार को सुबह कजाकस्तान से दिल्ली पहुंचने के बाद 89 उत्तराखंडी देर रात अपने घरों को पहुंच गए। करीब 57 लोग दून स्थित अपने घर लौटे हैं। प्रेमनगर के ठाकुरपुर रोड स्थित श्यामपुर में एक साथ आए 16 व्यक्तियों का स्वागत किया गया।इन्होंने जो आपबीती सुनाई वो किसी खौफनाक मंजर से कम नही है। बकौल उनके काबुल में खाने-पीने के संकट के बीच तालिबानियों से बचने का संघर्ष उनके लिए पल-पल काटना भारी कर रहा था।

हर कोई अपने-अपने स्तर से वतन वापसी की हर संभव कोशिश कर रहा था। लगातार स्वजनों से संपर्क कर उन्हें भी अपनी सलामती की खबर भी पहुंचा रहे थे। हालांकि, बीते दो दिन में उनकी उम्मीदें और हौसला दोनों पस्त होने लगे थे। एयरपोर्ट में उन्हें प्रवेश तक नहीं दिया जा रहा था।काबुल में फंसे दून निवासी आकाश थापा ने दून पहुंचकर आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि उन्हें काबुल में उनकी नींद उड़ी हुई थी।

तीन दिन से वह जरा भी नहीं सो पाए और न ही उन्हें भूख लग रही थी। हर पल उन्हें तालिबानियों के धमकने का खतरा लगा रहता। साथ ही एयरपोर्ट पर भी उनकी निगाहें दिनरात टिकी रहीं। उन्हें बस यही उम्मीद थी कि कब कोई भारतीय विमान उन्हें काबुल से बाहर ले जाएगा। जैसे ही शनिवार को उन्हें काबुल से कजाकस्तान जा रहे विमान कुछ भारतीय अधिकारियों ने बैठाया, तब जाकर उन्होंने राहत की सांस ली।इसी तरह से अफगानिस्तान से अपने घर देहरादून लौटे राजू थापा अभी भी उस नजारा का भुला नहीं पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब वह काबुल से घर के लिए आ रहे थे तो पास ही ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जा रही थी।

ऐसे में कुछ समय के लिए तो लग नहीं रहा था कि वापस वतन लौटेंगे। सभी लोग घबराए हुए थे और सतालम घर वापसी की दुआ मांग रहे थे। काबुल में बीते 2017 से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। अंतिम बार वह दिसंबर में दून आए थे और फिर वापस चले गए।तकरीबन पांच दिनों तक सफर के बाद राजू थापा दून पहुंचे। इसके बाद वह अपना घर नयागांव आ गए। राजू ने बताया कि अफगानिस्तान में जिस तरह की स्थिति है वह बयां नहीं कर सकते।

कुछ ही दिनों में जहां शांत था वहां गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी। सभी में डर इस बात का था कि कोई तालिबानी उनसे पूछताछ न कर सके। किसी तरह से कंपनी द्वारा घर जाने की व्यवस्था की। 15 अगस्त को काबुल से कतर अगले दिन कुवैत से होते हुए 17 अगस्त सुबह काठमांडू एयरपोर्ट पहुंचे। दो दिन तक यहीं होटल में ठहरे। 20 को दिल्ली के लिए फ्लाइट और 21 को दून वापसी हुई।

अफगानिस्तान से लौटे राकेश राणा ने बताया कि वे काबुल में करीब 20 लोग डेनमार्क एंबेसी में कार्यरत थे। तालिबान के आने के बाद हालात बिगडऩे पर वहां जान जाने का खतरा बन गया था।

डेनमार्क एंबेसी ने उनका पूरा साथ दिया। इसके बाद उन्हें अन्य उत्तराखंडी मिले और करीब सवा सौ भारतीयों के साथ काबुल से कजाकस्तान के लिए रवाना हुए, लेकिन विमान का तेल खत्म होने के कारण उन्हें ताजिकिस्तान में लैंड करना पड़ा। इसके बाद वे कजाकस्तान पहुंचे और शनिवार को दिल्ली के लिए उड़ान भरी।

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अब अपने घर पहुंच चुके हैं और अब सांस में सांस आई है। उन्होंने बताया कि डेनमार्क एंबेसी की ओर से बहुत सहयोग मिला। वहां के सुपरवाइजर स्टीफन ने उन्हें कहा कि कुछ भी हो जाए भारतीयों को बेसहारा नहीं छोड़ेंगे। जरूरत पड़ी तो उन्हें डेनमार्क ले जाएंगे।

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